भारतीय व्यापारियों ने लिपुलेख दर्रे के जरिए चीन से वस्तु विनिमय व्यापार बहाल करने की मांग की

punjabkesari.in Tuesday, Jun 11, 2024 - 02:33 PM (IST)

पिथौरागढ़ः उत्तराखंड में पिथौरागढ़ जिले के लिपुलेख दर्रे के जरिए 1992 से चीन के साथ वस्तु विनिमय व्यापार से जुड़े भारतीय व्यापारियों ने केंद्र से चीन सरकार के साथ कारोबार बहाल करने के मुद्दे पर बात करने का अनुरोध किया है। कई वर्षों से जारी कारोबार साल 2019 में कोविड-19 महामारी के कारण अचानक रुक गया औैर भारतीय व्यापारियों को तिब्बत के तकलाकोट बाजार में अपना ऊनी सामान को छोड़कर वापस लौटना पड़ा था।

धारचूला में सीमांत व्यापारियों के एक संगठन ने कहा कि पांच साल बीत जाने के बावजूद रुका कारोबार फिर से शुरू नहीं हो पाया है। अनुसूचित जनजाति भोटिया से संबंधित इन व्यापारियों ने हाल में चीन द्वारा नेपाल के साथ सभी 14 व्यापार दर्रों को खोलने के अनुबंध को लागू करने की प्रक्रिया शुरू करने के मद्देनजर लिपुलेख दर्रे के जरिए भी व्यापार को बहाल करने की मांग उठाई है। धारचूला स्थित भारत तिब्बती सीमांत व्यापार समिति के अध्यक्ष जीवन सिंह रोंगकली ने बताया कि चीन और नेपाल द्वारा दिसंबर 2022 में किए गए इस अनुबंध का क्रियान्वयन इस वर्ष 25 मई को शुरू हुआ जब चीन ने पूर्वी नेपाल के डोलपा जिले में स्थित पिआंगी दर्रे को व्यापार के लिए खोल दिया। उन्होंने बताया कि नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र में हुमला, बजंग और दार्चुला जिलों में स्थित तीन और दर्रों को भी व्यापार के लिए क्रमश: 20, 30 और 25 जून को खोल दिया जाएगा।

रोंगकली ने कहा, ‘‘हमने भारत सरकार को अब तक 22 अर्जियां भेजी हैं, जिनमें उनसे लिपुलेख दर्रे के जरिए व्यापार बहाल करने के लिए चीनी अधिकारियों से बातचीत करने का अनुरोध किया है।'' हालांकि, उन्होंने कहा कि अभी तक हमें उसका कोई जवाब नहीं मिला है। रोंगकली के अनुसार वर्ष 2019 में कोविड-19 के कारण सीमांत व्यापार के बंद होने के समय केवल धारचूला के ही जनजाति व्यापारी तिब्बत के तकलाकोट बाजार में 15 लाख रुपए का सामान छोड़कर भारत लौटे आए थे। उन्होंने कहा, ‘‘हमें इस बारे में कोई सूचना नहीं है कि हमारा सामान सुरक्षित है या सड़ने लगा है। व्यापार बंद होने के समय हमने सामान को बक्सों में बंद कर दिया था।'' रोंगकली ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि लिपुलेख दर्रे से व्यापार फिर शुरू हो जाए लेकिन अगर किसी कारण से ऐसा संभव न हुआ तो हमें तकलाकोट जाकर अपना सामान वापस लेने के लिए 15 दिन का समय दिया जाए।'' उन्होंने बताया कि 450 से ज्यादा भारतीय जनजाति व्यापारियों का सामान पिछले पांच सालों से वहां पड़ा है। वर्ष 1992 से इस व्यापारिक मार्ग के जरिए भारतीय व्यापारी पश्चिमी तिब्बत के 45 से अधिक गांवों के लोगों को जरूरी सामान की आपूर्ति कर रहे थे।

रोंगकली ने बताया कि सालाना डेढ़ करोड़ रुपए के कारोबार से हम हर साल लाखों रुपए का सीमा शुल्क और अन्य प्रकार के कर भारत सरकार को देते थे। वर्ष 2022 में चीन ने घोषणा की थी कि वह नेपाल के साथ सड़क और संचार नेटवर्क के पुनर्गठन के लिए ‘हिमालय पार बहुआयामी संपर्क' बनाएगा। रोंगकली ने आशंका जताई है कि चीन भारत से लगती सीमा पर स्थित दर्रों को खोलने की अनुमति नहीं दे रहा है तो हो सकता है कि तकलाकोट के गक्कू शहर में भारतीय व्यापारियों के लिए बनी मंडी को नेपाली व्यापारियों के हवाले कर दे।


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Nitika

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