HC ने उत्तराखंड में गंभीर अपराधों की जांच पर उठाए सवाल, पुलिस कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण देने की वकालत की
punjabkesari.in Sunday, Aug 11, 2024 - 02:53 PM (IST)
नैनीतालः उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में मादक द्रव्यों (नशीले पदार्थों) की तस्करी से जुड़े गंभीर अपराधों की दोषपूर्ण और गैर पेशेवर जांच पर सख्त रूख अख्तियार किया है। साथ ही पुलिस कर्मियों के लिए विशेष पुनश्चर्या पाठ्यक्रम (प्रशिक्षण कार्यक्रम) आयोजित किए जाने की वकालत की है। अदालत ने कहा है कि गंभीर मामलों की जांच सही नहीं होने पर अपराधी छूटते जा रहे हैं।
न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की पीठ ने यह महत्वपूर्ण निर्णय मादक द्रव्य अधिनियम (एनडीपीएस) के तहत जेल में बंद 68 वर्षीय दयावती की अपील पर सुनवाई के दौरान दिया। ऊधमसिंह नगर जिले के जसपुर के अमियावाला गांव निवासी दयावती को गांजा तस्करी के मामले में अदालत ने दोषी मानते हुए पांच वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने दोषपूर्ण जांच के चलते उसे जमानत प्रदान कर दी। अपीलकर्ता के अधिवक्ता आदित्य प्रताप सिंह ने जांच पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि गवाहों के बयानों में विसंगतियां हैं। महत्वपूर्ण साक्ष्य ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश नहीं किए गए और न ही अभियोजन पक्ष की ओर से ही अनिवार्य वैधानिक प्रावधानों का पालन किया गया है। न तो जांच अधिकारी और न ही अभियोजन पक्ष की ओर से इस प्रकरण के दो प्रमुख गवाहों को जांच प्रक्रिया में शामिल किया गया, जो गंभीर खामी है।
अदालत ने भी माना कि जांच दोषपूर्ण है और जांच अधिकारी ने अपने कर्तव्यों का सही निर्वहन नहीं किया है। अदालत ने ट्रायल कोर्ट की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट की ओर से भी इस मामले में अपनी शक्ति का उपयोग नहीं किया गया। अदालत ने अपने आदेश में साफ साफ कहा कि दंडनीय अपराधों की दोषपूर्ण जांच से आरोपी गंभीर अपराधों में बरी हो जाते हैं। यह सही नहीं है। अदालत ने आगे कहा कि हमारे देश में नशीली दवाओं और पदार्थों की तस्करी एक बड़ी चुनौती है। विखंडनकारी ताकतों ने देश के खिलाफ एक युद्ध छेड़ रखा है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो (एनसीबी) ने भी अपनी वेबसाइट में कहा है कि नशीले पदार्थों के तस्कर नवाचार की मदद तेजी से नई तकनीक का सहारा ले रहे हैं। इनमें डाकर्नेट और ड्रोन भी शामिल हैं। अदालत ने कहा कि यह स्थिति न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि खतरनाक है। अपराधियों के बरी होने से न केवल उनका साहस बढ़ता है बल्कि उनकी नजर में कानून का डर भी खत्म हो जाता है। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को रोकने के लिए यह बहुत जरूरी है कि जांच पेशेवर तरीके से की जाए। इसके लिए अदालत ने कहा कि आज समय की मांग है कि जांच अधिकारियों के लिए विशेष प्रशिक्षण आयोजित किए जाएं।
अदालत ने प्रमुख सचिव गृह और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को इसमें पहल करने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा कि एनसीबी और उत्तराखंड न्यायिक अकादमी (उजाला) के सहयोग से दो दिनी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाए। अदालत ने प्रदेश की सभी ट्रायल कोर्ट (निचली अदालतों) और जिला न्यायाधीशों तथा उजाला के निदेशक को भी आदेश की प्रति भेजने और इस प्रकरण में आवश्यक पहल करने को कहा है।