सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में रामलीला का जानिए इतिहास, कलाकार आज भी बड़ी शिद्दत से लेते है तालीम

punjabkesari.in Monday, Oct 07, 2024 - 12:57 PM (IST)

अल्मोड़ाः ऐतिहासिक शहर अल्मोड़ा को सांस्कृतिक नगरी यूं ही नहीं कहा जाता है। दरअसल,सांस्कृतिक शहर अलमोड़ा के कण कण में संस्कृति का रंग देखने को मिलता है। ऐसे में भला यहां की शारदीय रामलीला का जिक्र ना हो ऐसा कैसे हो सकता है। बता दें कि अल्मोड़ा में रामलीला का करीब 200 साल पुराना इतिहास है। इसके चलते विभिन्न स्थानों से कलाकार आज भी बड़ी शिद्दत के साथ रामलीला की तालीम लेते हैं।

प्राप्त सूचना के मुताबिक सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा हमेशा से अपनी कला और कलाकारों के लिए प्रसिद्ध रही है। इसी के साथ ही यहां की रामलीला का मंचन अपने गायन के बेहतर मिसाल के लिए आज भी कायम है। दरअसल,अल्मोड़ा शहर चंद्र राजाओं के द्वारा स्थापित किया गया है। लेकिन हर दौर में यहां कला और संस्कृति की ओर झुकाव बढ़ता ही रहा है। इसी बीच यदि रामलीला के इतिहास की बात करें तो जनपद में रामलीला की शुरूआत 1860 में हुई थी। बताया गया कि इस दौरान अल्मोड़ा में रामलीला मात्र एक ही स्थान बद्रेश्वर मंदिर पर होती थी। इस के बाद बद्रेश्वर मंदिर से रामलीला उठ कर नंदादेवी आ गई। बताया गया कि तभी से अल्मोड़ा नंदा देवी मंदिर में रामलीला की शुरुआत हुई। इसके बाद हुक्का क्लब, धारानोला, कर्नाटक खोला, सरकार की आली, खत्याडी, एनटीडी सहित दर्जनों स्थानों में रामलीला का मंचन किया जा रहा है। वहीं इसे देखने के लिए दूर दूर से लोग रामलीला स्थल पर पहुंचते है।

बता दें कि अल्मोड़ा में रामलीला की एक अलग ही पहचान है। यह रामलीला कुमाऊंनी भाषा में चौपाई राधेश्याम पीलू विहाग सहित अन्य रागो में गाई जाती है। बताया गया कि कुमाऊंनी रामलीला थेटर पर आधारित है और इसमें संवाद भी रहते है। वहीं आगे बताया गया कि इन रागो में रामलीला का गायन करना बहुत ही कठिन होता है। वहीं इस मौके पर अमरनाथ सिंह नेगी (पात्र) ने कहा कि ऐतिहासिक रामलीला की बात अगर होती है तो यह अल्मोड़ा जनपद की है। उन्होंने बताया कि यहां पर रामलीला का आयोजन 200 साल से किया जा रहा है। वहीं आगे कहा कि वह स्वयं भी 70 वर्षों से इस धार्मिक स्थल से आशीर्वाद प्राप्त कर रामलीला में अभिनय कर रहे है। 


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Content Editor

Vandana Khosla

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