"जलवायु के प्रति न्याय हमारा मार्गदर्शक सिद्वांत होना चाहिए", उपराष्ट्रपति ने देहरादून में IIP के छात्रों को किया संबोधित

punjabkesari.in Sunday, Sep 01, 2024 - 09:48 AM (IST)

देहरादून: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ शनिवार को अपने दो दिवसीय उत्तराखंड भ्रमण पर देहरादून पहुंचे। यहां उन्होंने मोहकमपुर क्षेत्र स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) के छात्रों और संकाय सदस्यों को संबोधित करते हुए जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं की चुनौती पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जलवायु के प्रति न्याय हमारा मार्गदर्शक सिद्वांत होना चाहिए। 

धनखड़ ने इस बात पर अफसोस व्यक्त किया कि हमारे लोकतंत्र और राष्ट्रवाद की भावना को चुनौती देने वाले लोग वे हैं, जो कभी सत्ता में थे या महत्वपूर्ण पदों पर थे। उप राष्ट्रपति ने कहा कि संकीर्ण पार्टीगत हितों की पूर्ति के लिए वे देश विरोधी नेरेटिव फैला रहे हैं और हमारे महान लोकतंत्र की तुलना पड़ोसी देशों की प्रणालियों से कर रहे हैं। युवाओं को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि ये लोग हमें भटकाने की पूरी कोशिश करते हैं। अपने वास्तविक इरादों को छिपाते हुए वे देश की अभूतपूर्व वृद्धि को नजरअंदाज करते हैं। देश की आर्थिक उन्नति और वैश्विक मंच पर इसकी शानदार वृद्धि को नजर अंदाज करते हैं। उन्होंने भारत के स्थिर लोकतंत्र और पड़ोसी देशों की प्रणालियों की तुलना किए जाने की आलोचना की। उन्होंने सवाल किया,‘‘क्या हम कभी तुलना कर सकते हैं?'' उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे इन नेरेटिव्स का विरोध करें। उन्हें बेअसर करें और इन हानिकारक तुलनाओं को उजागर करें।

धनखड़ ने कहा कि भारत, जो सबसे बड़ा और सबसे जीवंत लोकतंत्र है, और प्रधानमंत्री जो लगातार तीसरी बार कार्यरत हैं, को ऐसी अवमाननाओं का सामना नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा,‘‘ऐसा विचार किसी भी व्यक्ति के मन में कैसे उत्पन्न हो सकता है जो इस राष्ट्र, राष्ट्रवाद और लोकतंत्र में विश्वास करता है?'' उन्होंने ऐसे नेरेटिव्ज को ‘दुष्ट' और ‘शब्दों से परे' करार दिया। उपराष्ट्रपति ने जलवायु न्याय की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा,‘‘जलवायु परिवर्तन विशेष रूप से कमजोर वर्गों को प्रभावित करता है और इसलिए जलवायु न्याय हमारा मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए।'' उन्होंने कहा, ‘‘हमारी प्राचीन भावना और सभ्यता की आत्मा को प्रतिबिंबित करते हुए, भारत ने केवल घरेलू शासन में स्थिरता को शामिल नहीं किया है बल्कि वैश्विक प्रतिबद्धताओं को भी मार्गदर्शन किया है क्योंकि हम स्वयं को दुनिया से अलग नहीं मानते। हम कहते हैं कि दुनिया एक परिवार है- वसुधैव कुटुम्बकम।'' 
 


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Ramanjot

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