Avalanche: "अधिकारियों ने हिमपात की चेतावनी पर ध्यान... तो ये जानें बचाई जा सकती थीं", सामाजिक कार्यकर्ता ने प्रशासन को ठहराया जिम्मेदार

punjabkesari.in Wednesday, Mar 05, 2025 - 11:48 AM (IST)

गोपेश्वरः सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पिछले हफ्ते उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के शिविर पर हिमखंड टूटकर गिरने की घटना में आठ मजदूरों की मौत के लिए “प्रशासनिक लापरवाही” को जिम्मेदार ठहराया है और कहा है कि अगर अधिकारियों ने हिमपात की चेतावनी पर ध्यान दिया होता, तो ये जानें बचाई जा सकती थीं। सामाजिक कार्यकर्ता हिमस्खलन के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में “बेलगाम निर्माण कार्यों” को भी इस तरह की घटनाओं के लिए दोषी मानते हैं। दरअसल, चंडीगढ़ स्थित रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (डीजीआरई) ने 27 फरवरी को शाम पांच बजे उत्तराखंड के चमोली, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जैसे जिलों में 2,400 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित स्थानों के लिए अगले 24 घंटे में हिमस्खलन की चेतावनी जारी की थी। चमोली में बीआरओ का शिविर 28 फरवरी की सुबह साढ़े पांच बजे से छह बजे के बीच हिमस्खलन की चपेट में आ गया, जिससे उसके 54 मजदूर बर्फ के ढेर में फंस गए। इनमें से 46 को जीवित बचा लिया गया, जबकि आठ को मृत अवस्था में निकाला गया।

"प्रशासनिक लापरवाही के कारण माणा हिमस्खलन में आठ मजदूरों की मौत हुई"

सामाजिक कार्यकर्ता और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने कहा कि प्रशासनिक लापरवाही के कारण आठ मजदूरों की मौत हुई। हिमस्खलन की चेतावनी थी और अधिकारियों को समय पर कार्रवाई करनी चाहिए थी। सती ने कहा कि घटना के बाद उत्तराखंड सरकार ने स्की रिजॉर्ट औली में ठहरे पर्यटकों के लिए एक परामर्श जारी किया, जहां हिमस्खलन का कोई इतिहास नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह राज्य की विफलता से लोगों का ध्यान भटकाने का एक प्रयास लगता है। एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता ने भी सवाल उठाया कि जब खराब मौसम की चेतावनी थी और अधिकारियों को पता था कि इतनी बड़ी संख्या में मजदूर माणा में हैं, तो फिर उन्हें सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह क्यों नहीं जारी की गई। देहरादून में मौसम कार्यालय ने 27 फरवरी के लिए दो दिन पहले ही ‘यलो अलर्ट' जारी कर 3,500 मीटर और उससे अधिक ऊंचाई पर स्थित स्थानों पर भारी बारिश और बर्फबारी का पूर्वानुमान जताया था। हालांकि, राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र ने इस संबंध में 28 फरवरी को संबंधित जिला अधिकारियों को सतर्क किया और उससे पहले ही बीआरओ का शिविर हिमस्खलन से तबाह हो चुका था। पिछले चार साल में अकेले चमोली जिले में ही बीआरओ श्रमिकों के दो शिविर हिमस्खलन से नष्ट हो चुके हैं।

"हिमस्खलन की घटनाएं संवेदनशील इलाकों में बेहिसाब निर्माण कार्यों का नतीजा"

गोरतलब हो कि अप्रैल 2021 में भारत-तिब्बत सीमा से लगी नीती घाटी के सोमना इलाके में हिमस्खलन की चपेट में आने से मजदूरों की एक बड़ी बस्ती नष्ट हो गई थी और आठ मजदूर मारे गए थे। विशेषज्ञों का मानना है कि हिमस्खलन के प्रति संवेदनशील इलाकों में किए जा रहे बेहिसाब और लापरवाही पूर्ण निर्माण कार्यों के कारण ही ऐसी घटनाएं हो रही हैं। प्रसिद्ध भूविज्ञानी और केदारघाटी की भूगर्भ एवं मौसमी हलचलों के जानकार डॉ. एमपीएस बिष्ट ने कहा कि पूरा इलाका हिमस्खलन के लिहाज से संवेदनशील है और नर पर्वत से हिमखंड टूटकर गिरने की घटनाएं होती ही रहती हैं। उन्होंने कहा कि संवेदनशील क्षेत्रों में अंजाम के बारे में सोचे बिना निर्माण गतिविधियां की जा रही हैं और आपदाएं इसी का नतीजा हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मंगला कोठियाल ने कहा कि कि हिमस्खलन की ताजा घटना ने एक बार फिर पिछले अनुभवों से सबक लेने में अधिकारियों की “विफलता” को उजागर किया है। उन्होंने कहा, “22-23 अप्रैल 2021 को नीती घाटी क्षेत्र के रिमखिम में बीआरओ का एक शिविर हिमस्खलन की चपेट में आया था, जिसमें आठ मजदूरों की मौत हो गई थी। इस बार, माणा घाटी की बारी थी और हिमस्खलन की चपेट में एक बार फिर बीआरओ के ही मजदूर आए। हम अपने पिछले अनुभवों से सबक नहीं ले रहे हैं।” 
 


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Content Editor

Vandana Khosla

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